Lekhika Ranchi

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राष्ट्र कवियत्री ःसुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाएँ ःबिखरे मोती


बिखरे मोती (कहानी संग्रह) सुभद्रा कुमारी चौहान


सुभद्रा कुमारी चौहान जी का 'बिखरे मोती' पहला कहानी संग्रह है। यह कहानी संग्रह १९३२ में छपा। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझली रानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम्ब के फूल, किस्मत, मछुए की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं । इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है । अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं।


भग्नावशेष सुभद्रा कुमारी चौहान

1
न मैं कवि था न लेखक, परन्तु मुझे कविताओं से प्रेम अवश्य था। क्यों था यह नहीं जानता, परन्तु प्रेम था, और खूब था। मैं प्रायः सभी कवियों की कविताओं को पढ़ा करता था, और जो मुझे अधिक रुचतीं, उनकी कटिंग्स भी अपने पास रख लेता था।
एक बार मैं ट्रेन से सफ़र कर रहा था। बीच में मुझे एक जगह गाड़ी बदलनी पड़ी। वह जंक्शन तो बड़ा था, परंतु स्टेशन पर खाने-पीने की सामग्री ठीक न मिलती थी। इसी लिए मुझे शहर जाना पड़ा। बाजार में पहुँचते ही मैंने देखा कि जगह-जगह पर बड़े-बड़े पोस्टर्स चिपके हुए थे जिनमें एक वृहत कवि-सम्मेलन की सूचना थी, और कुछ खास-खास कवियों के नाम भी दिए हुए थे। मेरे लिए तो कवि-सम्मेलन का ही आकर्षण पर्याप्त था, परन्तु कवियों की नामावली को देखकर मेरी उत्कंठा और भी अधिक बढ़ गई।

2
दूसरी ट्रेन से जाने का निश्चय कर जब मैं सम्मेलन के स्थान पर पहुँचा तो उस समय कविता पाठ प्रारम्भ हो चुका था, और उर्दू के एक शायर अपनी जोशीली कविता मजलिस के सामने पेश कर रहे थे। 'दाद' भी इतने जोरों से दी जा रही थी कि कविता का सुनना ही कठिन हो गया था। खैर मैं भी एक तरफ़ चुपचाप बैठ गया, परन्तु चेष्टा करने पर भी आँखें स्थिर न रहती थीं, वरन वे किसी की खोज में बार-बार विह्वल सी हो उठती थीं। कई कवियों ने अपनी-अपनी सुन्दर रचनाएँ सुनाई। सब के बाद एक श्रीमती जी भी धीरे-धीरे मंच की ओर अग्रसर होती देख पड़ीं। उनकी चाल-ढाल तथा रूप-रेखा से ही असीम लज्जा, एवं संकोच का यथेष्ट परिचय मिल रहा था। किसी प्रकार उन्होंने भी अपनी कविता पढ़ना शुरू किया। अक्षर-अक्षर में इतनी वेदना भरी थी कि श्रोतागण मंत्रमुग्ध से होकर उस कविता को सुन रहे थे। वाह-वाह और खूब-खूब की तो बात ही क्या, लोगों ने जैसे साँस लेना तक बन्द कर दिया था। और मेरा तो रोम-रोम उस कविता का स्वागत करने के लिए उत्सुक हो रहा था।
अब बिना उनसे एक बार मिले, वहाँ से चले जाना मेरे लिये असम्भव सा हो गया। अतः इसी निश्चय के अनुसार मैंने अपना जाना फिर कुछ समय के लिए टाल दिया!


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